है अधूरापन मेरी ज़िन्दगी का अज़ाब
हूँ बिखरा हुआ मैं, टूटा हुआ है ख़्वाब
अब कुछ भी तो अच्छा लगता नहीं यहाँ पर
हर किसी को देख के होता है जी ख़राब
सब ही चुप थे ज़ालिमों के ज़ुल्मों पर
सब मुफ़्ती हो गए, जो पी ली हमने शराब
अपने होटों से लगाकर ज़हर दे दो,
अब न देखा जाएगा, ये आलम-ए-ख़राब
साँसें भी लूँ, अपने दरून से भी लड़ूँ
एक उम्र से जिस्म में नहीं है ताब

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