Author: Kashif Raza
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कैसी ख़ल्वत कैसी बेकली है
कैसी ख़ल्वत कैसी बेकली हैजब से ग़म की शाम ढल चली है रहता था जिस घर में मेरा तन-मनकहते हैं ग़मगीनी भी पली है उस घर से जाने को तड़पा जब भीकोई दुश्वारी गले पड़ी है बाहर आओ या रहो दुखी हीग़म-कश चुन यह चुनने की घड़ी है रौशन यह कैसी सहर है ‘काशिफ़’छू ले…
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अब हर किसी से मोहब्बत नहीं है
अब हर किसी से मोहब्बत नहीं है बस आपकी तरह ग़फ़लत नहीं है नर थे तो छीने गए हमसे आँसू क्या कम है कि सबसे नफ़रत नहीं है बाज़ू न दे जो गिरे आदमी को ऐसे बशर की कोई अज़मत नहीं है इंसान मुफ़लिस है अपनी तलब से इस बात में कोई हिकमत नहीं है…
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है अधूरापन मेरी ज़िन्दगी का अज़ाब
है अधूरापन मेरी ज़िन्दगी का अज़ाबहूँ बिखरा हुआ मैं, टूटा हुआ है ख़्वाबअब कुछ भी तो अच्छा लगता नहीं यहाँ परहर किसी को देख के होता है जी ख़राबसब ही चुप थे ज़ालिमों के ज़ुल्मों परसब मुफ़्ती हो गए, जो पी ली हमने शराबअपने होटों से लगाकर ज़हर दे दो,अब न देखा जाएगा, ये आलम-ए-ख़राबसाँसें…
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पतझड़ : पुस्तक समीक्षा
अभी हाल में मैंने हिन्दयुग्म द्वारा प्रकाशित मानव कौल का पाँचवा उपन्यास ‘पतझड़’ समाप्त किया। इस उपन्यास की कथावस्तु प्रेम और प्रेम में धोखा खाए, एक व्यक्ति के इर्द-गिर्द घूमती है। यदि गहराई से देखा जाए, तो प्रेम में धोखा खाना, तो एक धक्का मात्र है। असल में यह उपन्यास कथा के नायक ऋषभ के…
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हल्के-हल्के बेसबब ज़िंदगी को खोना
हल्के-हल्के बेसबब ज़िंदगी को खोना बेमतलब हर सुब्ह उठना, रात को सोना मेरे ज़ख्मों पर नमक मल सकते हैं आप आप तक न जा पाएगा मेरा रोना हावी हो रही है ख़्वाबों पे पेट की आग ज़िन्दा लाश है, मेरे दिल का आख़िरी कोना क्यों भागता रहता है, मौत से ये इंसान मुर्दे को मिट्टी…
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इक अकेलापन है, इक बेचैनी है
इक अकेलापन है, इक बेचैनी है, जान है, सो ये ज़िंदगी भी जीनी है क्या हासिल है इन सुबहों और शामों का यह किसने जीने की आरज़ू छीनी है मैं अपनी उदासी का करूँ कैसे बयाँ मेरा हमसफ़र भी तमाश-बीनी है बरसेगी आग आसमाँ से जल्दी ही यह अज़ाब मेरी ज़ात का, ज़मीनी है ख़त्म…
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क्या है और दिल में क्या नहीं है
क्या है और दिल में क्या नहीं हैअब हमें कुछ पता नहीं हैज़ख़्म-ख़ुर्दा मैं पहले से थातेरी कोई ख़ता नहीं हैहम निहायत सितम-रसीदादिल में भी कुछ बचा नहीं हैउसका भी तो गिला सुनो तुमयूँहीं सबसे ख़फ़ा नहीं हैहमको छूकर क्या पाओगे तुमहममें तो अब बफ़ा नहीं है