Author: Kashif Raza

  • अब हर किसी से मोहब्बत नहीं है

    अब हर किसी से मोहब्बत नहीं है

    अब हर किसी से मोहब्बत नहीं है बस आपकी तरह ग़फ़लत नहीं है नर थे तो छीने गए हमसे आँसू क्या कम है कि सबसे नफ़रत नहीं है बाज़ू न दे जो गिरे आदमी को ऐसे बशर की कोई अज़मत नहीं है इंसान मुफ़लिस है अपनी तलब से इस बात में कोई हिकमत नहीं है…

  • है अधूरापन मेरी ज़िन्दगी का अज़ाब

    है अधूरापन मेरी ज़िन्दगी का अज़ाब

    है अधूरापन मेरी ज़िन्दगी का अज़ाब हूँ बिखरा हुआ मैं, टूटा हुआ है ख़्वाब अब कुछ भी तो अच्छा लगता नहीं यहाँ पर हर किसी को देख के होता है जी ख़राब सब ही चुप थे ज़ालिमों के ज़ुल्मों पर सब मुफ़्ती हो गए, जो पी ली हमने शराब अपने होटों से लगाकर ज़हर दे…

  • पतझड़ : पुस्तक समीक्षा

    पतझड़ : पुस्तक समीक्षा

    अभी हाल में मैंने हिन्दयुग्म द्वारा प्रकाशित मानव कौल का पाँचवा उपन्यास ‘पतझड़’ समाप्त किया। इस उपन्यास की कथावस्तु प्रेम और प्रेम में धोखा खाए, एक व्यक्ति के इर्द-गिर्द घूमती है। यदि गहराई से देखा जाए, तो प्रेम में धोखा खाना, तो एक धक्का मात्र है। असल में यह उपन्यास कथा के नायक ऋषभ के…

  • हल्के-हल्के बेसबब ज़िंदगी को खोना

    हल्के-हल्के बेसबब ज़िंदगी को खोना

    हल्के-हल्के बेसबब ज़िंदगी को खोना बेमतलब हर सुब्ह उठना, रात को सोना मेरे ज़ख्मों पर नमक मल सकते हैं आप आप तक न जा पाएगा मेरा रोना हावी हो रही है ख़्वाबों पे पेट की आग ज़िन्दा लाश है, मेरे दिल का आख़िरी कोना क्यों भागता रहता है, मौत से ये इंसान मुर्दे को मिट्टी…

  • इक अकेलापन है, इक बेचैनी है

    इक अकेलापन है, इक बेचैनी है

    इक अकेलापन है, इक बेचैनी है, जान है, सो ये ज़िंदगी भी जीनी है क्या हासिल है इन सुबहों और शामों का यह किसने जीने की आरज़ू छीनी है मैं अपनी उदासी का करूँ कैसे बयाँ मेरा हमसफ़र भी तमाश-बीनी है बरसेगी आग आसमाँ से जल्दी ही यह अज़ाब मेरी ज़ात का, ज़मीनी है ख़त्म…

  • क्या है और इस दिल में क्या नहीं है

    क्या है और इस दिल में क्या नहीं है

    क्या है और इस दिल में क्या नहीं है साँस है पर ज़िन्दगी नहीं है बहुत चहकते हैं क़ैद परिंदे हँसते हैं पर कोई ख़ुशी नहीं है हैं लिए फिरते चश्म में हम ख़ूँ है सुना हमको कमी नहीं है है नहीं चाहते ख़ुद-कुशी करना पर आँखों में अब नमी नहीं है ख़ुशी से झूम…